लेखनी प्रतियोगिता -19-Jul-2023 "घर सुना हो गया"

     "घर सुना हो गया"

घर सुना आंगन सुना और दरवाजा भी ना कुछ कहता है । 
तेरे जाने से मां मेरी,,,,,ये घर कितना सुना लगता है।। 
बन्ज़र हो गए दिन अब सारे रात से भी अब डर लगता है। 
किस से लिपट कर सोऊँ,,,,,अब हर कोई बेगाना सा लगता है।। 

कौन उठाए डांट के मुझको बाबा भी कुछ भी नहीं कहते हैं। 
तेरे जाने से माँ,,,,,,बाबा भी दिन रात चुपी में बंधे से रहते हैं।। 
चौका- चूल्हा चिमटा सडसी कोने में,,,,,अब चुपचाप पड़े रहते हैं। 
सारे दिन ये तेरे हाथों के,,,,,स्पर्श के भूखे रहते हैं।। 

वो चहचाहट तेरी बातों की,,,,,हर ओर से कहकहे करती है। 
जिस ओर को फेरूं मैं मुख अपना,,,,तेरी छाया मुझको दिखती है।। 
वो साड़ी टंगी अलमारी में,,,,,उसमें तेरे बदन की ख़ुश्बू रहती है। 
पहन के जब देखूं आईना \'लगता ये\'तू मुझमें लिपटी रहती है।। 

घर सुना कर गई है मां तू,,,,बाबा तो लगता आधे जीते हैं। 
\'तेरे बिन\' बच्चे तेरे,,,,,,आधे हंसते आधे रोते हैं।। 
हाथ लगाते किसी चीज को,,,,लगता तुझको ही छूते हैं। 
घर हो गया सुना \'माँ\' अब पक्षी भी नहीं गुनगुनाते है ।। 

मधु गुप्ता "अपराजिता"

19/7/2023✍️✍️✍️

   13
2 Comments

Khushbu

19-Jul-2023 08:42 PM

Nice

Reply